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Pranashakti Series – Part 1

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Pranashakti Series – Part 1

आतंरिक साधना जगत इतना विशाल और विस्मयकारी है की कल्पना करना भी एक कल्पना मात्र ही है. परन्तु जो कल्पना में है उसका अस्तित्व भी निश्चित कही ना कही विद्यमान है. क्युकी हमारा सुक्ष्म मन विचरण करते हुए उन कल्पनाओं का साकार रूप प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से देख आता है.   प्रत्येक साधना में कुछ ऐसे तथ्य या आवश्यक बाते होती है जो अनिवार्य है. जिन के बिना हम यथोवान्छित फल प्राप्ति नहीं कर सकते. उन मूल तथ्यों में प्राण शक्ति का स्थान अलेखनीय है.

प्राण शक्ति, मनःशक्ति के अतिरिक्त एक और शक्ति है - आत्म शक्ति है .शरीर में आत्मा और उसकी शक्ति स्वतन्त्र है. प्राणशक्ति और मनःशक्ति की सञ्चालन व्यवस्था आत्मशक्ति द्वारा ही होती है. और उसी के द्वारा दोनों शक्तिया शरीर में क्रियाशील और संचालित रहती है.

योग तंत्र साधना इन्ही तीनो शक्तियों का योग ही तो है. क्रमानुसार प्रथम प्राणशक्ति, फिर मनःशक्ति और अंत में आत्म शक्ति की साधना संपन्न की जाती है.

प्रत्येक व्यक्ति में विभिन्न शक्ति तत्त्व का अस्तित्व भिन्नक होता है. इसिलए जब व्यक्ति साधना मार्ग पर अग्रसर होता है तो सफलता के अभीप्राय प्रायः भिन्न हो जाते है. किसी को बहुत ही कम समय में तो किसी को वर्षों तक कोई अनुभव नहीं होता.

तो क्या इसका अर्थ ये हुआ की उनमे प्राण शक्ति कम है? इसके बहुत से कारण हो सकते है. जैसे हमने जाना की आत्मशक्ति बाकि दोनों शक्तियो को संचालित करती हे तो जब आत्मशक्ति का विकास कम ज्यादा होता है तो इसका प्रभाव प्राणशक्ति और मनःशक्ति पर भी तो होगा.

प्राण शक्ति और मनःशक्ति के संयोग से ही एषणाओ और वृत्तियो का आविर्भाव होता है जिसका निष्कर्ष हे ज्ञान, वैराग्य और विवेक है.

एक और मुख्य कारण मनोमय शक्ति का अस्तित्व. दूसरे लोको की आत्माए तो प्राण शक्ति की अधिकता के कारण ही किसी एक मंडल से दूसरे मंडल में प्रवेश कर पाती है और प्रबल मोनोमय शक्ति के द्वारा ही अपने मनचाही या पूर्व काया में प्रकतिकरण कर सकती है.

प्राण शक्ति के के तीन मुख्य स्त्रोत है – सौर प्राण शक्ति, वायु प्राण शक्ति और भू प्राण शक्ति. सूर्य से जो प्राण शक्ति प्राप्त होती है उसे सौर प्राण शक्ति कहते है. जिस से सम्पूर्ण शरीर को प्राश्चेतना मिलती है और मानव शरीर सर्वदा स्वस्थ रहता है. योगी गन सूर्य की ओर पीठ करके बैठते है ताकि मेरुदंड  स्थित केन्द्र ज्यादा से ज्यादा सौर प्राण उर्जा ग्रहण कर सके.

साधना के कुछ समय पश्चात शरीर में प्राण शक्ति के आविर्भाव के कारण हम महसूस कर सकते हे की जो मृत कोशिका है जिनका कोई सक्रीय उपयोग नहीं होता जैसे केश, नख इन में प्राण शक्ति का संचार होने के कारण इनमे वृद्धि होने लगती है. इसलिए योगियों की जटाए लंबी होती है. देखिये हमारे साथ के ऐसे कई व्यक्ति है जो वारंवार कहते रहते हे की मेरे केश ही नहीं बढते और ना ही नाख़ून तो जब तक प्राण शक्ति का अभाव हमारे शरीर में रहेगा यही स्थिति तो बनी रहेगी न.

योगियों का दीर्घ काल तक समाधी में रहने का कारण भी प्रचुर प्राणशक्ति ही है. जितनी प्राण शक्ति में अधिकता उतनी ही ध्यानस्थ होना या समाधी सरलता से लग जाती है.

वायु प्राण शक्ति अर्थात हमारा श्वास उच्छवास. जिसे दूसरे शब्द में हम जीवन शक्ति कह सकते है जिसकी वजह से हम जिवंत रह पाते है. वायु प्राणशक्ति वास्तव में सूक्ष्मतम प्राण वायु है जिसे ‘ईथर’ कहते जो सभी जगह व्याप्त है. संपूर्ण विश्व ब्रम्हांड में इसका अस्तित्व सामान है.

वायु ग्रहण करने की क्रिया सभी जगह एक सी ही तो है हम विश्व के किसी भी कोने में चले जाए सांस तो हर जगह लेते ही है सो इर्थर सब जगह विद्यमान है. वायु प्राण शक्ति अधिक से अधिक प्राप्त हो इसलिए सरल मार्ग जो योग मे बताया है वो है प्राणायाम. एक निश्चित लय ताल में प्राणायाम क्रिया की जाए तो वायु से हम प्राण शक्ति ग्रहण कर सकते है. इस क्रिया से सूक्ष्म शरीर भी विकसित होने लगता है.

यही कारण है की उच्च कोटि के संत अपने पैरों को नहीं स्पर्श करने देते और नाही अपने समीप आने देते है क्युकी उनकी आभा अती विकसित होती है परिणाम स्वरूप साधारण जनमानस को इसका त्रास हो सकता हे जैसे रक्तताप का उच्च या धीमा होना, बेचैनी होना, घबराहट होना इत्यादि.

प्राण शक्ति बढाने के लिए दोनों पैरों को पानी में डाल कर कुछ समय बैठना चाहिए. क्यों की जल में प्राण शक्ति होती है. जलिए प्राणी कैसे कुछ भी बिना खाए जल में जीवित रह जाते है क्युकी उन्हें प्राण शक्ति मिलती रहती है.
प्राण शक्ति बढाने के लिए प्राण मुद्रा को नियमित रूप से करते रहना चाहिए.
पंचमहाभूतो की भूमिका को कभी नकारा ही नहीं जा सकता क्युकी जितने भी प्रकृति के गुढ़ रहस्य है  इन्ही से तो संबंधित है. और प्रकृति को समझने के लिए हमें आतंरिक चक्षु की आवश्यकता होती है. जो प्राण शक्ति द्वारा संचालित हते है.

इन सब बिन्दुओ को देने का अभिप्राय केवल इतना की साधना करने के पूर्व हम हमारी आतंरिक संरचनाओं को अच्छी तरह से जान समझले ले तो इन बिन्दुओ पर एकाग्र चित्त होके साधना में और बेहतर रूप से अग्रसर हो सकते है. क्युकी हमें अगर लूपहोल्स पाता होंगे तो हम ठीक कर सकते है.

क्रमशः

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