If there is any element present in the root of universe (made up of elements), then it is one and only “Shunya Element”. In previous article, we learnt about some important points regarding the elements. In layman terms, we defined element as the most subtle form of any matter. Shunya represent universe, in normal parlance we represent it by“Bindu”. In tantra, bindu elucidates Shakti. Therefore, significance of Bindu is inexpressible. There was nothing before the construction of universe and where there is nothing, there lies most of thing; not most of the things rather everything is present there. And all this has been termed as “Shakti” which is working behind each and every element.
Shakti i.e. Shunya which we call as Bindu in actuality is made up of innumerable atoms. In other words it is made up of Sookshmatisookshm Renu (unit subtle than atoms). It is mentioned in Vaikunth Parichay Gyan that this Sookshmatisookshm Renu is formed by combination of 8 bindus and if we understand it sequentially then this Sookshmatisookshm Renu make Parmaanu, Parmaanu makeParam Anu, Param Anu make As Renu , As Renu makeAnu( atom) and from atom, matter is originated in the outer world. In this manner, this journey of Sookshmatisookshm Renu goes on continuously from outer world to inner world. We term this as Bramha Vikhandan Kriya. It goes on continuously. Not deviating from the topic, I am not telling you about the definition of Parmaanu principles rather I want to tell that this activity of transformation from subtle to physical and physical to subtle is going on continuously not only in outer universe but also in inner universe. Speed of it increases or decreases in our body whenever we change sadhnas. In description of astral body, Understanding this activity will make it easy to understand advance points.
One amazing fact is that the subtle to subtlest Atoms and molecules of which seven lok are composed of, from them only seven bodies of human is formed. And these seven bodies are carriers of soul. Up till the time there is Praan element or Jeev Bhaav in soul, it cannot live without body. It attains other body after leaving previous one.
Now one important fact I would like to tell you that as I have written above that “activity of transformation from subtle to physical and physical to subtle is going on continuously not only in outer universe but also in inner universe”, these are seven layers of each body. For example, if we talk of physical body then seven layer or seven bodies sequentially are -
Sthool Shareer (PHYSICAL/MACRO/MATERIAL BODY)
Vaasna Shareer / Pret Shareer(LUST/PHANTOM/ETHERIC BODY)
This was regarding the physical body. In the same way, there will be seven layer of second layer i.e. Vaasna Shareer. In the same manner, every body will have seven layers and each layer will have seven sub-layers and so on. This sequence is endless which we term as inner universe. Now, just think for a moment that these seven bodies have got its unique powers and sub-body of each body has got subtlest powers in themselves. It simply means that human body has got infinite powers. And the manner in which we have discussed the infinite powers of the outer universe up till now, in the same manner our body which we call as inner universe has got infinite powers hidden in it which we can’t even predict.
It is very essential to understand the facts related to astral body so that the experiences which we witness which roaming with astral body does not happen inadvertently rather they are understandable. It is so that we can analyse it and know accurate answer to innumerable questions arising in our mind and unify/immerse ourselves in universal secrets.
In next article, I will discuss those points of astral body which we experience while doing practice because while doing practice we get stuck at one place or point and its resolution consumes lot of our time.
So in next article, along with these facts……
For today, this is enough…
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सुक्ष्म शरीर : कुछ जिज्ञासायें 3
तत्वरूपी सृष्टि के मूल में अगर कोई तत्व विद्यमान है तो वो केवल मात्र एक ही तत्व है और वो है “शुन्य तत्व”. विगत लेख में हमने तत्व के संबंध में कुछ विशेष बिन्दुओ कों जाना. सरल भाषा में किसी भी पदार्थ का सबसे सरल रूप की संज्ञा हमने तत्व कों दी है. शुन्य जहा ब्रम्हांड का प्रतीक है वही समान्य भाषा में हम इसे ‘बिंदु’ से दर्शाते है. और तंत्र में बिंदु शक्ति का निरूपण करता है. इसीलिए बिंदु का महत्व अनिर्वचनीय है. सृष्टि के निर्माण से पहले कुछ नहीं था और जहां कुछ नहीं होता वहा तो बहुत कुछ होता है, बहुत कुछ ही नहीं सब कुछ होता है और इसी सब कुछ कों‘शक्ति’ कहा गया है जो हर तत्व के पीछे कार्यरत है.
शक्ति अर्थात शुन्य जिस कों हम बिंदु कहते है वास्तव में असंख्य अणुओ कों लिए हुए है. या यु कहे की सुक्ष्मतिसुक्ष्म रेणु कों लिए हुए है, वैकुण्ठ परिचय ज्ञान में विदीत है की अष्ट बिन्दुओ के संयोग से सर्वप्रथम १ सुक्ष्मतिसुक्ष्म रेणु और अगर इस की सूक्ष्म होने की परिभाषा कों क्रमानुसार समझे तो ये ये सुक्ष्मतिसुक्ष्म रेणु परमाणु, और परमाणु से परम अणु, और परम अणु से अस रेणु और अस रेणु से अणु और अणु से ही बाह्य जगत में पदार्थ की उत्पत्ति होती है.इसी प्रकार सुक्ष्मतिसुक्ष्म रेणु की बाह्य जगत से अंतरजगत तक यात्रा निरतर प्रवाहित होती है. इसीको हम सृष्टि की ब्रम्हा विखंडन क्रिया की संज्ञा देते है. ये अविरल चालायमान है. मै यहाँ विषयांतर ना करते हुए आपको परमाणु सिद्धांत की परिभाषा नहीं अपितु ‘सरल भाषा में सूक्ष्म से स्थूल और स्थूल से सूक्ष्म की क्रिया जो ना केवल बाह्य ब्रम्हांड अपितु अंतर ब्रम्हांड में भी विद्यमान सतत जारी है’. इसकी गति हामरे देह में घटती या बढती रहती है जब हम साधनाओ में हेर बदल करते है और सूक्ष्म शरीर के विवेचन में इस प्रक्रिया कों समझे से अग्रिम बिन्दुओ कों समझने में आसानी होगी ही..
एक अद्बुत और अचरज भरी बात ये है की सातों लोक का गठन जिन सुक्ष्म से सुक्ष्मतम अणु परमाणुओ से हुआ है उन्ही से ही मानव की सप्त देह की निर्मिती हुई है. और वे सप्त देह ही आत्मा के वाहक है. अद्यापि आत्मा में प्राण तत्व या जीव भाव है तब तक वह बिना देह के रह ही नहीं सकती. एक त्यागने के पश्चात दूसरी धारण कर लेती है.
अब यहाँ एक महत्वपूर्ण बात मै आपको बता दू की जैसा मैंने ऊपर लिखा है की प्रत्येक ‘सरल भाषा में सूक्ष्म से स्थूल और स्थूल से सूक्ष्म की क्रिया जो न केवल बाह्य ब्रम्हांड अपितु अंतर ब्रम्हांड में भी विद्यमान है सतत जारी है’ वो इस् प्रकार की प्रत्येक देह की सप्त परत है उदाहरणार्थ अगर हम स्थूल देह की बात करे तो सप्त परत या सप्त देह क्रमानुसार इस् प्रकार से है -
स्थूल शरीर (PHYSICAL/MACRO/MATERIAL BODY)
वासना/प्रेत शरीर(LUST/PHANTOM/ETHERIC BODY)
सूक्ष्म शरीर(ASTRAL/SUBTLE/METICULOUS BODY)
मनस शरीर(MENTAL/PSYCHIC/INTELLECTUAL BODY)
आत्मिक शरीर (SPIRITUAL BODY/ PLATONIC/ METAPHYSICAL BODY)
ये तो हुई स्थूल देह की बात इसी प्रकार दूसरी परत अर्थात वासना शरीर की सात परत इसी प्रकार प्रत्येक देह की सप्त परत और फिर उसी की उप परत और इस् प्रकार ये क्रम अंतहीन है जिसे हम अंतर ब्रम्हांड की संज्ञा देते है. अब सोचे साधारणतया हम सप्त देहो अपने अलग शक्तिया लिए हुए है और हर देह की उप देह अपने आप में सूक्ष्मतिसुक्ष्म शक्तिया लिए हुए है. इसका सीधा अर्थ ये है की मानव देह में असीम शक्तिया विद्यमान है. और जिस प्रकार हम बाह्य ब्रम्हांड की अनंत शक्तियों की चर्चा अब तक करते आये है ठीक वैसे ही हमारी देह अर्थात जिसे हम अंतर्ब्रम्हांड कहते है उनमे भि वही असीम संभावनाए जिसका हम अंदाजा तक नहीं लगा सकते छुपी हुई है.
सुक्ष्म शरीर से संबंधित तथ्यों कों समझना अति आवश्यक है. क्युकी सूक्ष्म शरीर के विचरण के समय जो अनुभव हमें होते या जिस ज्ञान के विस्तार से हम अवगत होते है वो केवल अनजाने में ही ना हो अपितु बोधप्रद हो. ताकि हम उसकी मीमांसा कर हमारे मानस में उठने वाले अनंत प्रश्नों का सटीक उत्तर जान कर ब्रम्हांडीय रहस्यों में विलीन हो सके एकाकार हो सके.
मै अगले लेख में सुक्ष्म शरीर के उन बिन्दुओ पर चर्चा करुँगी जो हम अभ्यास करते वक्त अनुभव करते है. क्युकी अभ्यास करते हुए हम कभी कभी एक स्थान या बिंदु पर अटक जाते है और उसका निराकरण कैसे हो उसमे हम ना जाने कितना समय जायां कर देते है..